सोमवार, 25 दिसंबर 2017

वैदिक गणित के 13 उपसुत्र-अर्थ,प्रयोग और उदाहरण 13 upsutras of vedic mathematics

पिछले post में हमने 16 सूत्रों पर चर्चा किया था अब हम 13 उपसुत्रों पर बात करेंगे .....

1.आनुरुप्येण

अर्थ :अनुपात से / अनुरूपता से

प्रयोग :संख्याओं के गुणा में, किसी संख्या का घन (cube) ज्ञात करने में; सरल द्विघाती समी०(simple quadratic eq.n) और सरल युगपत समी०(simultaneous eq.n )  हल करने में,  किसी संख्या को दो संख्याओं के वर्गों के योग या वर्गों के अंतर के रूप में व्यक्त करना.
उदाहरण:हम यहाँ किसी संख्या का घन --का उदाहरण दे रहे हैं.

12 का घन= 12^3=    

चरण 1.  हम 12 के अंकों को देखेंगे-- 1 और 2 का अनुपात 1:2 है.
चरण 2.  1 का घन (cube) लिखेंगे ---  1^3 =1
चरण 3.  अब अंकों का अनुपात 1:2* है इसलिए दुसरे चरण में प्राप्त संख्या को 2 से गुणा* कर लिखते जायेंगे (तीन बार)--- 1  2   4   8.

चरण 4.  बीच के दो संख्याओं का दुगुना कर उन्हीं के नीचे लिख देंगे--- 2 और 4 का दुगुना 4 और 8 है.

चरण 5.अब दायें से बाएं जोड़ना है---यदि जोड़ में एक से अधिक अंक आये तो उसे उसके बाएं वाले में जोड़ देना है,जैसे 8+4=12 का 2 लिखा गया और 1 को अगले में 2+4+1=7 कर दिया गया.

*यदि यह अनुपात 2:5  (=1:  5/2) होता तो पहले तो 2 का घन=2^3=8 लिखते फिर अन्य तीन के लिए 8 को 5/2 से गुणा करते=20, 20x 5/2=50,50x 5/2=125 लिखते. अगले चरण में बीच वाले का दुगुना--40 और 100.और अंत में जोड़ करने से 25 का घन मिलता. 

25^3 =

दायें से बाएं जोड़ने के क्रम में 8\60\150\125-- 8\60\150+12\5-- 8\60\162\5-- 8\60+16\2\5-- 8\76\2\5-- 8+7\6\2\5-- 15\6\2\5.

2.शिष्यते शेषसंज्ञः 


हमने इस सूत्र का अर्थ और प्रयोग खोजने का प्रयास किया,भारती कृष्ण तीर्थजी महाराज की (प्रकाशित हुई) कृति में इस सूत्र का आभाव है.internet में कई स्थानों पर 'शेष' के साथ अन्य बातें लिखी हुई है.वैसे श्रीमद् भागवत में इसके लिखे होने के संकेत हैं.हम निरंतर प्रयासरत हैं जिस भी क्षण हमें कुछ जानकारी मिलती है हम update कर देंगे.


3. आद्यं आद्येन् अन्त्यम् अन्त्येन

अर्थ: प्रथम को प्रथम के द्वारा और अंतिम को अंतिम के द्वारा.  
प्रयोग : इस उपसूत्र का 'आनुरुप्येण' और 'लोपनस्थापनाभ्यां' उपसुत्रों के साथ प्रयोग होता है.इसकी सहायता से द्विघात और त्रिघात व्यंजको का गुणनखंडन किया जाता है.
उदाहरण: 'आनुरुप्येण' के साथ इसका प्रयोग--  द्विघात व्यंजक का       गुणनखण्डन ---चरण1(step 1).--

इसका गुणनखंडन के लिए बीच वाले गुणांक अर्थात 13 को दो भागों में बांटना है जिससे की आदि के गुणांक का आदि भाग से और अंत के भाग का अंत के गुणांक से  आनुरुप्य हो. 13का दो भाग है-- 18;-5.  3:18 बराबर है -5: -30 ;दोनों अनुपात बराबर हैं तब----

चरण 2.   3:18 (या -5: -30) का सरलतम रूप है-- 1:6  इसलिए (x + 6) होगा पहला गुणनखंड.
चरण 3.   3x^2  को x से भाग दें और -30 को 6 से भाग दें-- 3x और -5 आया, इस तरह दूसरा गुणनखंड होगा (3x-5)
  अतः गुणनखंडन है (x+6)(3x-5).



4.केवलैः सप्तकं गुण्यात्

अर्थ :  यह सूत्र वास्तव में संख्यात्मक कूट (numeric code)है, जो कहता है 7 के केस में गुणक 143 होगा.
प्रयोग: इस तरह के और भी कूट हैं--1.'कलौ क्षुद्रससैः' तथा 2.'कंसे क्षामदाहखलैर्मलैः'. इनका प्रयोग भिन्न को दशमलव में बदलने के लिए किया जाता है.
उदाहरण: 
 1/7 =          इसके लिए, 999 x 143=142857

इस तरह 1/7=0.142857  
 इस संख्या में 1, 2, 4, 5, 7, 8 बढ़ते क्रम में हैं.
1/7 के दशमलव प्रसार को पलटने पर----2 के स्थान से बढते हुए --

2/7=0.285714  ;3/7=0.428571--इसके लिए 4 के स्थान से बढ़ते हुए.
4/7=0.571428;  5/7=0.714285;  6/7=0.857142.


5.वेष्टनम्

अर्थ: आश्लेषण करके(by osculation) /आश्लेषक के द्वारा 
प्रयोग:दो तरह के आश्लेषक (osculator)  होते हैं-धनात्मक और ऋणात्मक. इस  सूत्र का प्रयोग किसी संख्या की किसी संख्या से  विभाज्यता जाँच करने में किया जाता है.
उदाहरण:  धनात्मक आश्लेषक के प्रयोग से जाँच करना है कि 5293240096, 139 से विभाज्य है या नहीं .

*आश्लेषण होता क्या है?-- यदि 5 आश्लेषक हो तो 28 का आश्लेषण होगा -- 2+8x5=42; 14 का होगा 1+4x5=21; 21का होगा 2+1x5=7.

अब, 139 का आश्लेषक होगा --  14
5293240096 का 14 से आश्लेषण करेंगे.---  529324009+6x14=529324093;  52932409+3x14=52932451; 5293245+1x14=5293259; 529325+9x14=529451; 52945+1x14=52959; 5295+9x14=5421; 542+1x14=556; 55+6x14=139.  अतः दिया गया संख्या 139 से विभाज्य है(प्रत्येक आश्लेषण से प्राप्त संख्याएँ भी 139 से विभाज्य होगा) .

6.यावदूनं तावदूनम्

अर्थ:जितने की कमी है उतनी और कमी करें.
प्रयोग: यह यावदूनं* सूत्र के समतुल्य है या दोनों एक ही हैं.इसका प्रयोग वही होना चाहिए जो यावदूनं का है.--किसी संख्या का घन ज्ञात करना,किसी संख्या  का चतुर्घात ज्ञात करना.

*16 सूत्रों की सूची देखें.

7.यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत्

अर्थ:संख्या की आधार से जितनी भी कमी हो उतनी कमी और करें,  और उसी कमी (या विचलन)का वर्ग भी रखें.
प्रयोग:इस उपसुत्र का प्रयोग किसी संख्या का वर्ग ज्ञात करने में होता है.

उदाहरण: 91का वर्ग =91^2=
 यहाँ आधार 100 से 9 की कमी* है,इतनी और कमी करने पर 91-9=82.
फिर कमी का वर्ग =9^2=81.
इस तरह 91^2=8281.

*यदि कमी के स्थान पर आधार से अधिकता होता तो,जितने की अधिकता है उतना और अधिक कर दें.और अधिकता का वर्ग भी रखें. 

जैसे-13 का वर्ग=13^2= 
  यहाँ आधार 10 से तीन की अधिकता है,इतना और अधिक करने पर 13+3=16 और 3 का वर्ग =3^2=9 अतः 13^2=169.

**ध्यान देने की आवश्यकता है -- जब आधार 100 है तब विचलन का वर्ग करने पर दो अंक होने चाहिए,यदि नहीं है तो 0 लगाकर लिखेंगे.और जब आधार 10 है तो एक ही अंक होने चाहिए यदि एक से अधिक अंक आ जाता  है तो दहाई का अंक पहले वाले में जोड़ दें. आधार 1000 हुआ तो--तीन अंक.

8.अन्त्ययोर्दशकेऽपी

अर्थ: पूर्व के अंक एक समान हों और अंतिम अंक का योग भी 10* हो.
प्रयोग:इस सूत्र का एक विशेष प्रयोग है गुणा के लिए,और 5 से अंत होने वाली संख्याओं के वर्ग के लिए.

उदाहरण:64x66=    
इस में (पूर्व) 6 दोनों में है, और 4+6=10 होता है, इसलिए यह सूत्र यहाँ लागू होता है.
पूर्व का एकाधिक लिखें-- 6 का एकाधिक 7 होगा.
6x7\4x6=42\24   इस तरह 64x66=4224

73x77 =7x8\3x7 =56\21 =5621
122x128 =12x13\2x8 =15616

*यदि अंत के संख्या का योग 10 न होकर 100,या 1000, या 100..0.. हो तब भी यह सूत्र लागू होगा. और पूर्व में एक से अधिक अंक भी एक समान हो सकते हैं(122x128). जैसे - 398x302= 3x4\98x2=12\196 =12\0196 =120196.
*#उत्तर के दायें पक्ष में, आधार में जितने 0 हैं उसके दोगुना अंक होंते हैं. आधार 10--अंक दो;आधार 100--अंक 4 ;आधार 1000--अंक 6...... .

9. अन्त्ययोरेव

अर्थ: केवल अंतिम (स्वतंत्र) पद द्वारा ;by constant term only.
प्रयोग:एक विशिस्ट प्रकार के समीकरण को हल करने में.

उदाहरण: इस नीचे लिखे हुए समीकरण में------------------------------------------->

बाएं तरफ अचर पद (constant term) को छोड़ दें तो 3x^2+5x और 5x^2+6x उसी अनुपात में हैं जिसमे कि 3x+5 और 5x+6 हैं.

ऐसी स्तिथि में, यह सूत्र कहता है कि ------------------->

अतः 4x=12  या x=3.


10.समुच्चयगुणितः

 यह सूत्र 'गुणित समुच्चयः ' से भिन्न नहीं है ऐसा प्रतीत होता है.और यदि दोनों में भिन्नता है तो वर्तमान में स्वामी जी की प्रकाशित हुई कृति में उपलब्ध नहीं है.

11.लोपनस्थापनाभ्याम्

अर्थ: (एकांतर से) लोपन और स्थापना द्वारा.
प्रयोग: कठिन द्विघाती व्यंजकों का गुणनखंडन करने में,व्यंजकों का HCF ज्ञात करने में,घन समीकरणों को हल करने में, और बहु युगपत समीकरणों को हल करने में.

उदाहरण:  कठिन द्विघाती व्यंजकों का गुणनखंडन----
इस व्यंजक को हल करने के लिए लोपन और स्थापन करना है (आद्यं.. सूत्र का भी प्रयोग है).

1.)पहले z का लोपन[z=0] और x , y का स्थापन------
 अब जो द्विघात व्यंजक प्राप्त हुआ उसका गुणनखंडन(आद्यं सूत्र से) करेंगे -->  (x+2y)(2x+3y)
 2.)फिर y का लोपन[y=0]और x ,z का स्थापन-------


 फिर से जो व्यंजक प्राप्त हुआ है उसका गुणनखंडन करेंगे- (x+3z)(2x+z)

(x+2y),(x+3z),(2x+3y),(2x+z) इनसे दो पद बनते हैं--
    (x+2y+3z) ; (2x+3y+z)
अतः हमारा गुणनखंड है : (x+2y+3z)(2x+3y+z)

**कभी कभी ये दो पद आसानी से नहीं बनते हैं तब तीनो का लोपन करना पड़ेगा.

12.विलोकनम्

अर्थ: अवलोकन द्वारा (by mere observation)
प्रयोग: सामान्य द्विघात समीकरणों को हल करना,युगपत द्विघात समीकरणों को हल करना, भाग की क्रिया में.
 उदाहरण:   सामान्य द्विघात समी०----  x+ 1/x=  17/4
     विलोकनम सूत्र अवलोकन करने को कहता है जैसे यहाँ  x का मन 4 रखने पर 17/4 मिल जायेगा अतः x=4 होगा इसके लिए और अधिक कुछ नहीं करना है.

13. गुणितसमुच्चयः समुच्चयगुणितः
अर्थ:गुणनखंडों के गुणांकों के योग का गुणनफल, गुणनफल के गुणांकों के योग के बराबर होता है.

**यही अर्थ गुणित समुच्चयः  के लिए भी लिखा गया है.इन दोनों सूत्रों का कोई अलग उपयोग नहीं दिखता है अपितु दोनों सूत्र एक ही हैं या हम इसमें समुच्चयगुणितः को भी ले लें तो भी गलत नहीं होगा.  अगर कोई त्रुटी आपको दिखती है तो सूचित करें. हम बेहतर को और बेहतर बनाने के प्रयास में लगे हुए हैं.





अगले पोस्ट में सभी  सूत्रों पर विशेष चर्चा होगी........ आपको यह post कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया comment करके दें.


vedicmathsinhindi.blogspot.com













23 टिप्‍पणियां:

मानस पाण्डेयः ने कहा…

intresting & useful...........keep posting. thanks.....

Star Maths ने कहा…

nice sir

Unknown ने कहा…

Very nice sir
Usefulness

Anil yadav ने कहा…

Very useful,thanks

Unknown ने कहा…

as soon as

Unknown ने कहा…

detail expand as soon as sir. given example of every formulas and every parts.

Unknown ने कहा…

Nice

Answerer ने कहा…

Supb,so nice

Unknown ने कहा…

it's very useful in modern Life and compitision

UPENDRA S SHEKHAWAT ने कहा…

आभार और अभिनन्दन है। आपका ईश्वर आपको अपनी कृपा दृष्टि से प्रकाशित करते रहे।

Unknown ने कहा…

Plz send me in pdf format
vishnukumar7842@gmail.com

Unknown ने कहा…

Send me pdf file please

Ajay Arora ने कहा…

Shandar shukriya

India blog ने कहा…

Very nice post

Unknown ने कहा…

आप 41*41 का और 63*68 का गुना करिये

Unknown ने कहा…

Bhai bahute Sundar explain Kiya hai sabhi sutra KO
Thanks for this great work

Ziyyara Edutech ने कहा…

Vedic mathematics these days is gaining popularity because of its speedy and accurate calculations. Calculations are an integral part of any profession today and the ability to do it quickly and accurately is definitely an important skill that anyone would desire to have. So Join Live 1-On-1 vedic maths 16 sutras Class With Ziyyara

बेनामी ने कहा…

It's very good pls give me next

बेनामी ने कहा…

Its very good 👍 pls give us next one.

बेनामी ने कहा…

Hemant lodhi

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छा।

बेनामी ने कहा…

एकदम झकास

Shalya ने कहा…

Thanks for this

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