बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

[hindi]|वैदिक गणित |shankaracharya bharti krishna tirthaji maharaj|,govardhan matha ,puri.

शंकराचार्य श्री भारती कृष्ण तीर्थजी  महाराज 
गोवर्धन मठ ,पूरी ,उड़ीसा 


  • नाम - वेंकटरमण शास्त्री (पूर्व का नाम )
  • जन्म:-14 मार्च 1884,तिरुनेलवेली ,तमिलनाडु ,भारत 
  • पिता -पी. नृसिंह शास्त्री ,पहले तहसीलदार थे और  बाद में डिप्टी कलेक्टर,तत्कालीन मद्रास प्रिसेंडेन्सी। 
  • परिवार -तमिल ब्राह्मण परिवार। 

  • शिक्षा -मद्रास विश्वविद्यालय से 1899 में माध्यमिक परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण  हुए,उन्हें कई विषयों पर अध्ययन की रूचि थी इसके साथ साथ विभिन्न भाषाएँ भी जानते थे। संस्कृत उन्हें जितना पसंद आता था उतना ही पारंगत थे उस विषय में ,और इसी कारण उन्हें जुलाई 1899 में  मद्रास संस्कृत एसोसिएशन द्वारा 'सरस्वती ' की उपाधि दी गयी थी।1902 में  स्नातक (बी.ए.) और 1903-04 में स्नातकोत्तर (एम. ए.) किया ,सात[छः](गणित,विज्ञान,दर्शन शास्त्र,इतिहास,संस्कृत,अंगरेजी)  विषयों से।
 
  • सामाजिक जीवन-वेंकटरमण बड़ोदा कॉलेज में विज्ञान और गणित के अध्यापक थे। महर्षि अरविन्द उनके सहकर्मी थे जिनके साथ मिलकर स्वदेसी आंदोलन को सहयोग करने कलकत्ता  जाकर सभाएं की, भाषण दिए. 1905 में उन्होंने गोपाल कृष्ण  गोखले (तत्कालीन अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ) के साथ शिक्षा सम्बन्धी आंदोलनों में भी  भाग लिया। 

  • आध्यात्मिक जीवन -1908 में आध्यात्मिक ज्ञान को पाने के लिए शंकराचार्य श्री सच्चिदानन्द शिवाभिनव नृसिंह सरस्वती जी के पास श्रृंगेरी मठ, मैसूर  गए। किन्तु वेंकटरमण  फिर से राष्ट्रीय आन्दोनलों में उलझ गए। पुनः 1911 में लौटने के बाद उन्होंने वेदों ,वेदान्तों और धार्मिक ग्रंथों को पढ़ा  और योग साधनायें की। लगभग 8 वर्ष तक की तपस्या के बाद उन्होंने अथर्ववेद के एक परिशिस्ट  से 16 सूत्रों को खोजा जो कि वैदिक गणित के आधार हैं।उन्होंने इन्हीं  प्रत्येक 16 सूत्रों पर एक-एक किताब लिखा था|

  • सन्यास -शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी त्रिविक्रम तीर्थ ने वेंकटरमण को  सन्यास आश्रम में प्रवेश कराया (1919  में ). और तब से  वेंकटरमण का नाम भारती कृष्ण तीर्थ हो गया।दो वर्ष बाद 1921 में उन्हें शंकराचार्य बनाया गया।  कुछ समय बाद 1925 में  गोवर्धन मठ ,पूरी के शंकराचार्य  स्वामी मधुसूदन तीर्थ ने भारती कृष्ण तीर्थ को गोवर्धन मठ का मठाधीश  बना दिया.और  तीर्थ जी ने अपनी शेष जीवन यात्रा इसी मठ में किया |

  • गोवर्धन मठ में रहते हुए तिर्थजी ने बहुत से लोक कल्याणकारी कार्य किये | धार्मिक कार्यों से  बहुत से देश और विदेश यात्राएं की .देश के  कई विश्वविद्यालयों  में जाकर व्याख्यान  भी दिए.
  • 1950 में इस बात की पुष्टि हो चुकी थी की स्वामी जी द्वारा लिखी  हुए 16 किताबें  खो चुकी  हैं .जब तीर्थ जी स्वामी को  इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने फिर से वैदिक गणित  के  सूत्रों को लिखने का सुरुआत किया .उन दिनों स्वामी जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था और उनकी दृष्टी भी ठीक नही रही थी ,इन कारणों से उन्होंने अपनी स्मृति के आधार पर केवल एक किताब लिखा .1957 में यह एक किताब उन्होंने पूर्ण किया .(जिसका पहली बार प्रकाशन 1965 में हुआ )

  • स्वर्गवास -2 फरवरी 1960 को स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी का निधन हो गया .






vedicmathsinhindi.blogspot.in

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Cool Mera practical ban gaya thanks bro 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Unknown ने कहा…

Thanks For this Information 😊😊

Unknown ने कहा…

Sala videsiye ne chura liya or kahta ki is sutr ka khoj hamne Kiya hh

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