vedic mathematics introduction|||वैदिक गणित का परिचय
वर्तमान समय में जहाँ कहीं भी वैदिक गणित का पठन-पाठन हो रहा है वह मुख्यतः एक पुस्तक पर आधारित है जिसके रचयिता हैं शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज१ . इस पुस्तक को उन्होंने 1957 में लिखा था.इस पुस्तक में 16 सूत्रों और 13 उपसुत्रों२ की चर्चा की गयी है जो कि, स्वामी जी के अनुसार 'अथर्ववेद 'के किसी परिशिष्ट३ से लिया गया है.पारंपरिक गणित से अलग यह गणित वेदों से प्राप्त होने के कारण 'वैदिक गणित' का नाम धारण किये हुए है.
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वर्तमान समय में जहाँ कहीं भी वैदिक गणित का पठन-पाठन हो रहा है वह मुख्यतः एक पुस्तक पर आधारित है जिसके रचयिता हैं शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज१ . इस पुस्तक को उन्होंने 1957 में लिखा था.इस पुस्तक में 16 सूत्रों और 13 उपसुत्रों२ की चर्चा की गयी है जो कि, स्वामी जी के अनुसार 'अथर्ववेद 'के किसी परिशिष्ट३ से लिया गया है.पारंपरिक गणित से अलग यह गणित वेदों से प्राप्त होने के कारण 'वैदिक गणित' का नाम धारण किये हुए है.
वैदिक गणित की विशेषतायें-
- गणना (calculation) करने में आसान .
- गणना करने के दौरान समय की बचत.
- वैदिक गणित में आप सीधे उत्तर (answer) प्राप्त करते हैं वह भी कम से कम गलती की सम्भावना के साथ .
- आसानी से अपने उत्तर की जाँच कर सकते हैं. आंकिक योग रीति(digital sum method) के प्रयोग से प्रश्न के उत्तर की जाँच की जा सकती है.
- पारंपरिक गणित(conventional mathematics) में हम दायें से बाएं (भाग ,डिवीज़न में बाएं से दायें)उत्तर प्राप्त करते हैं जबकि वैदिक गणित के प्रयोग से दोनों तरफ से अपने उत्तर तक पहुँच सकते हैं.
- पूरा का पूरा गणित मात्र 16 सूत्रों(और 13 उपसुत्रों) पर आधारित है.ये 16 सूत्र याद रखने में आसान हैं और प्रयोग करने में भी.
- केवल 9 तक पहाड़ा याद रखने की आवश्यकता है.
- ज्यादातर मानसिक कार्य(mental work) करने की आवश्यकता है और अभ्यास करके तो काग़ज ,कलम की आवश्यकता भी कम से कम रह जाती है.
- वैदिक गणित के प्रयोग से तर्कशक्ति की वृद्धि होती है.
- गणित पढ़ने में आत्मविश्वास बढ़ जाता है और गणित रुचिकर लगने लगती है.
२.वैदिक गणित के 16 सूत्र हैं--
- एकाधिकेन पूर्वेण
- निखिलम् नवतश्चर्मं दशतः
- उर्ध्वतिर्यग्भ्याम्
- परावर्त्य योजयेत्
- शून्यं साम्य-समुच्चये
- आनुरुप्ये शून्यं अन्यत्
- संकलन व्यवकलनाभ्यां
- पूरणापूर्णाभ्याम्
- चलनकलनाभ्याम्
- यावदूनम्
- व्यष्टि-समष्टिः
- शेषाण्यङ्केन चरमेण
- सोपान्त्यद्वयमन्त्यं
- एक न्युनेन पुर्वेण
- गुणितसमुच्चयः
- गुणकसमुच्चयः
- आनुरुप्येण
- शिष्यते शेषसंज्ञः
- आद्यमाद्येनान्त्यमन्त्येन
- केवलैः सप्तकं गुण्यात्
- वेष्टनम्
- यावदूनं तावदुनं
- यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत्
- अन्त्ययोर्दशकेऽपि
- अन्त्ययोरेव
- समुच्चयगुणितः
- लोपनस्थापनाभ्यां
- विलोकनं
- गुणितसमुच्चयः समुच्चयगुणितः
३.वर्तमान में उपलब्ध अथर्ववेद की प्रति में ऐसा कोई परिशिस्ट नहीं है जिसमे ये सूत्र लिखे हों.साथ ही कैलकुलस और बीजगणित (algebra)और दशमलव प्रणाली जैसे विषयों की जानकारी वैदिक युग में नहीं थी ऐसी मान्यता है, और इसके संकेत भी हैं. इन्ही कारणों से यह तथ्य विवादास्पद रहा है.
किन्तु यह भी नहीं कहा जा सकता की अथर्ववेद की जो प्रति(copy) हमारे पास उपलब्ध है वह असली/संपूर्ण/असंशोधित है.(हां पर यहाँ एक सवाल यह भी है कि क्या स्वामीजी के पास अथर्ववेद की कोई और प्रति थी जो नष्ट हो चुकी है? ) गोवर्धन मठ, पूरी के एक शंकराचार्य के कथन अनुसार--शिष्यते शेषसंज्ञः(13 उपसुत्रों में से एक) श्रीमद् भागवत के 10वें स्कन्द >अध्याय 3>श्लोक 25 का चरम पद , के रूप में लिखित है. इनके अनुसार स्वामीजी ने अपने ज्ञान और विवेक से,वेदों( विशेषकर अथर्ववेद) के साथ-साथ अन्य धार्मिक ग्रंथों के श्लोकों से ,उनके शब्दों से इन 16 सूत्रों का निर्माण किया होगा .इस तरह के और भी पद/शब्द(terminology) वेदों में मिले हैं.
इस विषय पर अनेक लोगों ने अपने अपने मत दिए हैं कुछ विरोध में तो कुछ .... .लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वैदिक गणित का वास्तविक आधार वेद हैं या नहीं.
यदि हम 'वैदिक गणित' को वैदिक न मानें तो इसे 'वैदिक'-गणित कहना अर्थहीन होगा. अतः हम इसे वेदों से प्राप्त वैदिक गणित मानकर ही इसका अध्ययन करेंगे.
यदि हम 'वैदिक गणित' को वैदिक न मानें तो इसे 'वैदिक'-गणित कहना अर्थहीन होगा. अतः हम इसे वेदों से प्राप्त वैदिक गणित मानकर ही इसका अध्ययन करेंगे.
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धन्यवाद
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