बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

वैदिक गणित का परिचय--विशेषता और उपयोग

vedic mathematics introduction|||वैदिक गणित का परिचय


वर्तमान समय में जहाँ कहीं भी वैदिक गणित का पठन-पाठन हो रहा है वह मुख्यतः एक पुस्तक पर आधारित है जिसके रचयिता हैं शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज . इस पुस्तक को  उन्होंने 1957 में लिखा था.इस पुस्तक में 16 सूत्रों और 13 उपसुत्रों  की चर्चा की गयी है जो कि, स्वामी जी के अनुसार 'अथर्ववेद 'के किसी परिशिष्ट३   से लिया गया है.पारंपरिक गणित से अलग यह गणित वेदों से प्राप्त होने के कारण 'वैदिक गणित'  का नाम धारण किये हुए है.


वैदिक गणित की विशेषतायें-
  1. गणना (calculation) करने में आसान .
  2. गणना करने के दौरान समय की बचत.
  3. वैदिक गणित में आप सीधे उत्तर (answer) प्राप्त करते हैं वह भी कम से कम गलती की सम्भावना के साथ  .
  4. आसानी से अपने उत्तर की जाँच कर सकते हैं. आंकिक योग रीति(digital sum method)  के प्रयोग से प्रश्न के  उत्तर की जाँच की जा सकती है.
  5. पारंपरिक गणित(conventional mathematics) में हम दायें से बाएं (भाग ,डिवीज़न में बाएं से दायें)उत्तर प्राप्त करते हैं जबकि वैदिक गणित के प्रयोग से दोनों तरफ से अपने उत्तर तक पहुँच सकते हैं.
  6. पूरा का पूरा गणित मात्र 16 सूत्रों(और 13 उपसुत्रों) पर आधारित है.ये 16 सूत्र याद रखने में आसान हैं और प्रयोग करने में भी.
  7. केवल 9 तक पहाड़ा याद रखने की आवश्यकता है.
  8. ज्यादातर मानसिक कार्य(mental work) करने की आवश्यकता है और अभ्यास करके तो काग़ज ,कलम की आवश्यकता भी कम से कम रह जाती है.
  9.  वैदिक गणित के प्रयोग से तर्कशक्ति की वृद्धि होती है.
  10. गणित पढ़ने में आत्मविश्वास  बढ़ जाता है और गणित रुचिकर लगने लगती है.
.भारती कृष्ण तीर्थ जी   महाराज (1884-1960) गोवर्धन   मठ पूरी के शंकराचार्य थे .विभिन्न भाषाओं और विषयों  की जानकारी थी उनको.   गणित  और संस्कृत  के  मर्मज्ञ  थे.वेदों  के अध्ययन के बाद उन्होंने वैदिक गणित   के  16 सूत्रों का पता लगाया था.  (अधिक जानने के लिये पहले के पोस्ट को पढ़ें)
.वैदिक गणित के 16 सूत्र हैं--
  1. एकाधिकेन पूर्वेण 
  2. निखिलम् नवतश्चर्मं दशतः
  3. उर्ध्वतिर्यग्भ्याम्
  4. परावर्त्य योजयेत्
  5. शून्यं साम्य-समुच्चये
  6. आनुरुप्ये शून्यं अन्यत्
  7. संकलन व्यवकलनाभ्यां
  8. पूरणापूर्णाभ्याम्
  9. चलनकलनाभ्याम्
  10. यावदूनम्
  11. व्यष्टि-समष्टिः
  12. शेषाण्यङ्केन चरमेण
  13. सोपान्त्यद्वयमन्त्यं
  14. एक न्युनेन पुर्वेण
  15. गुणितसमुच्चयः
  16. गुणकसमुच्चयः
          13   उपसूत्र हैं--
  1. आनुरुप्येण
  2. शिष्यते शेषसंज्ञः
  3. आद्यमाद्येनान्त्यमन्त्येन
  4. केवलैः सप्तकं गुण्यात्
  5. वेष्टनम्
  6. यावदूनं तावदुनं
  7. यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत्
  8. अन्त्ययोर्दशकेऽपि
  9. अन्त्ययोरेव
  10. समुच्चयगुणितः
  11. लोपनस्थापनाभ्यां
  12. विलोकनं
  13. गुणितसमुच्चयः समुच्चयगुणितः
(इन सूत्रों पर अगले post में चर्चा  होगी...)


.वर्तमान में उपलब्ध अथर्ववेद की प्रति में ऐसा कोई परिशिस्ट नहीं है जिसमे ये सूत्र लिखे हों.साथ ही कैलकुलस और बीजगणित (algebra)और दशमलव प्रणाली जैसे विषयों की जानकारी वैदिक युग में नहीं थी ऐसी मान्यता है, और इसके संकेत भी हैं. इन्ही कारणों से यह तथ्य विवादास्पद रहा है.
           किन्तु यह भी नहीं कहा जा सकता की अथर्ववेद की जो प्रति(copy) हमारे पास उपलब्ध है वह असली/संपूर्ण/असंशोधित है.(हां पर यहाँ एक सवाल यह भी है कि क्या स्वामीजी के पास अथर्ववेद की कोई और प्रति थी जो नष्ट हो चुकी है? )  गोवर्धन मठ, पूरी  के एक शंकराचार्य के कथन अनुसार--शिष्यते शेषसंज्ञः(13 उपसुत्रों में से एक) श्रीमद्  भागवत के  10वें स्कन्द >अध्याय 3>श्लोक 25 का चरम पद , के रूप में लिखित है. इनके अनुसार स्वामीजी ने अपने ज्ञान और विवेक से,वेदों( विशेषकर अथर्ववेद) के साथ-साथ  अन्य धार्मिक ग्रंथों के श्लोकों से ,उनके शब्दों से इन 16 सूत्रों का निर्माण किया होगा .इस तरह के और भी पद/शब्द(terminology) वेदों में मिले हैं.
              इस विषय पर अनेक लोगों ने अपने अपने मत दिए हैं कुछ विरोध में तो कुछ ....     .लेकिन यह स्पष्ट  नहीं  है कि वैदिक गणित का वास्तविक आधार वेद हैं या नहीं.
यदि हम 'वैदिक गणित' को वैदिक न मानें तो इसे 'वैदिक'-गणित कहना अर्थहीन होगा. अतः  हम इसे वेदों से प्राप्त वैदिक गणित मानकर ही इसका अध्ययन करेंगे.





 पोस्ट से संबंधित कोई विचार और  सुझाव  कृपया comment करके बतायें.  
 धन्यवाद

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बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

[hindi]|वैदिक गणित |shankaracharya bharti krishna tirthaji maharaj|,govardhan matha ,puri.

शंकराचार्य श्री भारती कृष्ण तीर्थजी  महाराज 
गोवर्धन मठ ,पूरी ,उड़ीसा 


  • नाम - वेंकटरमण शास्त्री (पूर्व का नाम )
  • जन्म:-14 मार्च 1884,तिरुनेलवेली ,तमिलनाडु ,भारत 
  • पिता -पी. नृसिंह शास्त्री ,पहले तहसीलदार थे और  बाद में डिप्टी कलेक्टर,तत्कालीन मद्रास प्रिसेंडेन्सी। 
  • परिवार -तमिल ब्राह्मण परिवार। 

  • शिक्षा -मद्रास विश्वविद्यालय से 1899 में माध्यमिक परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण  हुए,उन्हें कई विषयों पर अध्ययन की रूचि थी इसके साथ साथ विभिन्न भाषाएँ भी जानते थे। संस्कृत उन्हें जितना पसंद आता था उतना ही पारंगत थे उस विषय में ,और इसी कारण उन्हें जुलाई 1899 में  मद्रास संस्कृत एसोसिएशन द्वारा 'सरस्वती ' की उपाधि दी गयी थी।1902 में  स्नातक (बी.ए.) और 1903-04 में स्नातकोत्तर (एम. ए.) किया ,सात[छः](गणित,विज्ञान,दर्शन शास्त्र,इतिहास,संस्कृत,अंगरेजी)  विषयों से।
 
  • सामाजिक जीवन-वेंकटरमण बड़ोदा कॉलेज में विज्ञान और गणित के अध्यापक थे। महर्षि अरविन्द उनके सहकर्मी थे जिनके साथ मिलकर स्वदेसी आंदोलन को सहयोग करने कलकत्ता  जाकर सभाएं की, भाषण दिए. 1905 में उन्होंने गोपाल कृष्ण  गोखले (तत्कालीन अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ) के साथ शिक्षा सम्बन्धी आंदोलनों में भी  भाग लिया। 

  • आध्यात्मिक जीवन -1908 में आध्यात्मिक ज्ञान को पाने के लिए शंकराचार्य श्री सच्चिदानन्द शिवाभिनव नृसिंह सरस्वती जी के पास श्रृंगेरी मठ, मैसूर  गए। किन्तु वेंकटरमण  फिर से राष्ट्रीय आन्दोनलों में उलझ गए। पुनः 1911 में लौटने के बाद उन्होंने वेदों ,वेदान्तों और धार्मिक ग्रंथों को पढ़ा  और योग साधनायें की। लगभग 8 वर्ष तक की तपस्या के बाद उन्होंने अथर्ववेद के एक परिशिस्ट  से 16 सूत्रों को खोजा जो कि वैदिक गणित के आधार हैं।उन्होंने इन्हीं  प्रत्येक 16 सूत्रों पर एक-एक किताब लिखा था|

  • सन्यास -शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी त्रिविक्रम तीर्थ ने वेंकटरमण को  सन्यास आश्रम में प्रवेश कराया (1919  में ). और तब से  वेंकटरमण का नाम भारती कृष्ण तीर्थ हो गया।दो वर्ष बाद 1921 में उन्हें शंकराचार्य बनाया गया।  कुछ समय बाद 1925 में  गोवर्धन मठ ,पूरी के शंकराचार्य  स्वामी मधुसूदन तीर्थ ने भारती कृष्ण तीर्थ को गोवर्धन मठ का मठाधीश  बना दिया.और  तीर्थ जी ने अपनी शेष जीवन यात्रा इसी मठ में किया |

  • गोवर्धन मठ में रहते हुए तिर्थजी ने बहुत से लोक कल्याणकारी कार्य किये | धार्मिक कार्यों से  बहुत से देश और विदेश यात्राएं की .देश के  कई विश्वविद्यालयों  में जाकर व्याख्यान  भी दिए.
  • 1950 में इस बात की पुष्टि हो चुकी थी की स्वामी जी द्वारा लिखी  हुए 16 किताबें  खो चुकी  हैं .जब तीर्थ जी स्वामी को  इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने फिर से वैदिक गणित  के  सूत्रों को लिखने का सुरुआत किया .उन दिनों स्वामी जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था और उनकी दृष्टी भी ठीक नही रही थी ,इन कारणों से उन्होंने अपनी स्मृति के आधार पर केवल एक किताब लिखा .1957 में यह एक किताब उन्होंने पूर्ण किया .(जिसका पहली बार प्रकाशन 1965 में हुआ )

  • स्वर्गवास -2 फरवरी 1960 को स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी का निधन हो गया .






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